शिकारगंज महल (शिखर महल ) करौली शहर से 1 किमी दूर रणगवां के ताल से पहले मंडरायल रोड पर शिकारगंज में पड़ता है । यह उत्कृष्ट वास्तु एवम् शिल्प कला का एक अच्छा उदाहरण है ।इसका निर्माण महाराजा हरबक्स पाल जी ने 1835 ईo में शुरू कराया था । जोकि महाराजा प्रताप पाल के समय (सन् 1846 ) में पूरा हुआ था ।
शिकारगंज महल (शिखर महल ) करौली शहर से 1 किमी दूर रणगवां के ताल से पहले मंडरायल रोड पर शिकारगंज में पड़ता है । यह उत्कृष्ट वास्तु एवम् शिल्प कला का एक अच्छा उदाहरण है ।इसका निर्माण महाराजा हरबक्स पाल जी ने 1835 ईo में शुरू कराया था । जोकि महाराजा प्रताप पाल के समय (सन् 1846 ) में पूरा हुआ था । इसका निर्माण मुख्य रूप से करौली राज परिवार को युध्द के समय सुरक्षित रखने के लिए किया था संभवतः इसकी जरूरत नही पड़ीं । इस महल का एक भाग में रहने के लिए हवेली बनी हुई है । जिसका उपयोग राजा के पारिवारिक सदस्य या हाडौती के राव करते थे । आखिरी में यहाँ परदमपुरा के राव और महाराजा भौम पाल जी के भाई मोती पाल जी रहे थे ।
दुसरा प्रमुख हिस्सा एक आलिशान शिकार महल है । महल का निर्माण मुगल शैली में किया गया था l इसमें बने हुए वाटर फॉल एवं फव्वारों का निर्माण महल के सौंदर्य में चार चाँद लगाता है l फब्बारे एवं वाटर फॉल से निकला हुआ पानी एक बड़े कुंड में एकत्रित होता था l यही पानी लिफ्ट करके फिर उपयोग में लिया जाता था l यह व्यबस्था इसी अवधि में निर्मित डीग के महल के फव्वारों से मेल खाती है l भूमि तल से ऊपर तीन मंजिलों में बनी हुई भूल-भुलैया अद्भुत है , जोकि अवश्य आंकलन करने योग्य विषय है । इसके अलावा यहां महल में प्रयोग हुए खम्भे एवम् इस भवन में प्रयोग हुई स्थापत्य कला दर्शनीय है
इनके अलावा भूमि के गर्भ में छिपी इस महल की मंजिले जिसमे पहली मंजिल पर आपको दाहिने हाथ पर 1 रास्ता जाता दिखेगा जो कि भूल भुलैया को जाता है । उसके बाद दूसरी मंजिल पर आपको बाएँ हाथ पर 1 रास्ता जाता दिखेगा जो की करौली रावल महल तक लगभग 2 किमी तक जाता है | और तीसरी मंजिल पर आपको एक बहुत बड़े हॉल देखने को मिलेगा जिसमे स्थित कंगूरे और उनपर उकेरी गई मुर्तिया आपको अचंभित कर देंगी आश्चर्य का विषय तो यह भी है के यहां सुरंग भी पक्के पत्थर से बनी हुई है | वेणु गोपाल जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस सुरँग की चौडाई एवम् ऊंचाई मनुष्य के आने जाने की दृष्टि से लगभग 10 गुणा 10 फ़ीट राखी गई थी । जिससे दुश्मन के समय राज परिवार के लोग सुरंग के रास्ते राज महल से शिखर महल तक आ सके ।
यह सुरंग जितनी बची है , और उसे जितना करौलीन्स की टीम ने देखा था , वहां तक वह पक्का निर्माण देखने को मिला आगे का हिस्सा अधिक क्षतिग्रस्त है । समय की मार और अवांछनीय तत्वों द्वारा इस महल को काफी नुकसान पहुचाया है, जिसका मुख्य कारण यहा के बारे में फैली अफवाह है के यहां खजाना छुपा हुआ है जो कि इस महल की जमीन में छठी मंजिल पर है और इसमें हास्यपद बात यह है इस महल में जमीन के निचे सिर्फ चार ही मंजिल है जिससे सुनकर काफी लोग गए भी थे पर वह भी तीन या चार मंजिल तक ही हो कर आ पाए परन्तु तत्कालीन राजस्थान सरकार द्वारा इसके पुनरुद्धार का कार्य जारी है इसके अलावा इस महल के रहवास क्षेत्र को महाराजा श्री कृष्ण चंद्र पाल जी द्वारा सरकार को विद्यालय के लिए दान दिए जाने के कारण वह काफी हद तक सुरक्षित है | आइये कुछ झलकियाँ देखते है :-