मुग़ल सत्ता के पतन के बाद जैसे अन्य रियासतो ने अपनी निजी टकसाल खोली थी उसी क्रम में करौली रियासत ने भी महाराज गोपाल सिंह जी समय में सिक्के ढालना शुरू किया था पर हमे अभी तक इस तथ्य से जुडी कोई जानकारी नही मिली है परन्तु यह के स्थानीय लोगो की मान्यता यही है । हमे प्राप्त सिक्को की ज्यादातर जानकारिया शाह आलम के समय के बाद की है । प्राप्त जानकारी से यह तो स्पष्ट है कि करौली रियासत की अपनी भी एक टकसाल थी जिसमे दो खाँचो पर हथोडो की मार से गोल मोटे और बगैर किनारो वाले सिक्के बनाए जाते थे ।
प्रथम सिक्का महाराज माणक पाल जी (सन् 1780 ) के समय का मिलता है । इस टकसाल में चांदी,सोना और ताम्बे के सिक्के ढाले जाते थे । इन सिक्को के प्रतीक चिन्ह सीधी झाड़ और कटार थे इसके अलावा सन् के साथ अंक 13 के बीच 0 चिन्ह सिक्को के अधोपटल पर तथा ऊपरी हिस्से पर शाह का ''श'' और ''ह'' और जुलुस का "ज" पर बिन्दुओ के चिन्ह थे । शाह जुलुस राजाओ की गद्दी नशीनी की तिथि को सूचित करता था तथा दूसरी तरफ शासको के नाम का संकेताक्षर लिखा होता था ।
इसके बाद जनवरी 1906 में ब्रटिश राज ने सभी रियासती मुद्राओ का प्रचलन पूर्णतया बंद कर दिया और अंग्रेजी सिक्का जारी करके इन टकसालों पर ताला लगवा दिया । करौली रियासत की टकसाल वर्तमान फूटाकोट के पास बालिका प्राथमिक विद्यालय भवन में थी । यही पास में पुराना डाकघर भवन जहाँ टकसाल का कार्यालय रहा वही विद्यालय भवन सिक्के बनाने का कारखाना और स्टोर रहा था ।